Thursday 10 October 2019

शिक्षण में शिक्षण नीतियां और शिक्षण प्रविधियों का व्यावहारिक अनुप्रयोग

प्रभावी शिक्षण हेतु यह आवश्यक है कि कक्षा में जाने से पूर्व ही शिक्षक यह सुनिश्चित कर कि किसी निश्चित कक्षा में शिक्षण कार्य हेतु चयनित "प्रकरण विशेष' के अन्तर्गत छात्र व्यवहार में वांछित परिवर्तन हेतु निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति किस प्रकार होगी, तथा ये भी तय करे कि किसी निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करने हेतु कितने विशिष्ट उद्देश्य निर्मित किए जाएं, जिन्हें प्राप्त करने के लिए कक्षा की समय सीमा को ध्यान में रखते हुए प्रकरण विशेष को कितने शिक्षण बिन्दुओं में विभाजित करे। साथ ही यह सुनिश्चित करे कि प्रत्येक शिक्षण बिंदु को छात्रों के मन मस्तिष्क पर साकार रूप में उकेरने हेतु किन-कन शिक्षण विधियों का प्रयोग करेगा? इनमें कौन-कौन से प्रांसागिक उदाहरणों का प्रयोग करेगा, जिन्हें छात्र जीवन से जोड़ते हुए उपर्युक्त शिक्षण बिंदुओं की व्याख्या को और अधिक स्पष्ट व प्रभावशाली बना सकेगा। इसके अतिरिक्त शिक्षण को अधिक प्रभावी बनाने के लिए शिक्षक को यह भी निश्चित करना चाहिए कि उपर्युक्त उदाहरणां को प्रस्तुत करने हेतु वह कौन-कौन सी शिक्षण प्रविधियों का प्रयोग करेगा एवं इन प्रविधियों के प्रयोग के लिए वह वर्तमान में शिक्षक के समक्ष उपलब्ध कौन सी शिक्षण तकनीक का प्रयोग करेगा जो वर्तमान परिस्थितियों एवं उपलब्ध संसाधनों में सर्वोत्तम हो तथा सैद्धान्तिक एवं वैज्ञानिक रूप से न्यायोचित भी हो। शिक्षक को यह ज्ञात होना चाहिए कि उपर्युक्त योजनाबद्ध शिक्षण छात्र में किस हद तक रूचि उत्पन्न करेगा तथा कक्षा विशेष के विद्यार्थियों को तार्किक चिन्तन हेतु प्रेरित करते हुए उसके संज्ञानात्मक, भावात्मक तथा कियात्मक पक्षों को किस प्रकार एवं कितने अंश तक प्रभावित करेगा?

शिक्षण का उद्देश्य उपलब्ध जानकारी को आत्मसात करने में छात्र की सहायता एवं मार्गदर्शन करना एवं प्रत्ययों का वास्तविक जीवन में उपयोग करना है। अतः एक शिक्षक को अनिवार्य रूप से उपर्युक्त प्रत्ययों की जानकारी होने के साथ-साथ परिस्थिति विशेष में उनका सर्वोत्तम प्रयोग करने में दक्ष होना चाहिए। जहाँ शिक्षण नीति शिक्षक द्वारा निर्मित पाठ-योजना को दिशा प्रदान करती है वहीं शिक्षण विधि छात्रों की प्रत्ययों को प्राप्त करने की जिज्ञासा को उचित अंश में पूर्णता प्रदान कर शान्त करने का कार्य करती है, शिक्षण प्रविधि छात्रों में प्रस्तुत प्रत्यय में रूचि उत्पन्न करती है तो शिक्षण युक्तियाँ विभिन्न प्रकार से प्रत्ययों पर अधिपत्य करने का अवसर प्रदान करती हैं। वर्तमान शिक्षण प्रकिया में छात्र केन्द्रित शिक्षण को ध्यान में रखते हुए अन्वेषण, समीक्षा, योजना पद्वति, वाद-विवाद, ब्रेन-स्टॉर्मिंग, अभिनय, संवेदनशील प्रशिक्षण, स्वतन्त्र अध्ययन आदि जनतांत्रिक शिक्षण नीतियों को सर्वोत्तम माना गया है।

इसी तरह अन्य सभी शिक्षण बिंदुओं को उनकी प्रकृति एवं विषयवस्तु के अनुसार प्रस्तुत करने हेतु उनके लिए उपयुक्त शिक्षण विधि, शिक्षण प्रविधि तथा सर्वोत्तम उदाहरणों का प्रयोग करते हुए पूर्ण प्रकरण को छात्रों के समक्ष निर्धारित समय में रखने हेतु कौन सी शिक्षण नीति का प्रयोग करते हुए आज की कक्षा विशेष में किन किन व्यवहारिक उद्देश्यों की प्राप्ति सुनिश्चित हो सकेगी, शिक्षक को इससे भली भांति परिचित होना भी नितान्त आवश्यक है।

स्पष्ट है कि उपरोक्त शिक्षण व्यवस्था को कक्षाकक्ष में सम्पूर्ण प्रभाव में लागू करने हेतु निश्चित रूप से शिक्षक को अधिकाधिक शिक्षण कौशलों, शिक्षण नीतियों, विधियों, प्रविधियों, एवं शिक्षण युक्तियों का ज्ञान होने के साथ-साथ कक्षाकक्ष में उन्हें उपलब्ध सीमित संसाधनों में सर्वोत्तम प्रकार से लागू करने के कला में निपुण होना अनिवार्य एवं अपरिहार्य है जिनके अभाव में शिक्षक अपूर्ण एवं अप्रभावी प्रतीत होने लगता ह।

मोर पाल सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर (एम.एड. विभाग),